मंगलवार, 21 अगस्त 2012

नब्ज को काट लेने दो ..कफ़स भी कैद है...




(1)

मैं निर्मित करता एक आकाश
तुम्हारे भर के लिए
जैसे ऑरेकल
या शायद नियो करतें है मैट्रिक्स में.
पर तुम्हारे वास्ते इस सुविधा के मानी तुम्हारी आज़ादी में हस्तक्षेप होता ।
"बड़े से बड़ा कफ़स भी कैद है ।"
इसलिए मैंने बनाए तुम्हारे एक जोड़ी पंख,
आकाश किसी विकल्प सा खुला छोड़ दिया तुम्हारे लिए ।
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(2)

ये ख़ब्त ही सही
इसे पागलपन ही कह लो !
बची हुई स्लिपिंग पिल्स नहीं गिनी कयी दिनों से
शामें उतनी क्या कितनी भी उदास नहीं रहीं अब
मैं ठीक ठीक बता सकता हूँ ऐसा कबसे हुआ
मैं ठीक ठीक बता सकता हूँ कि आखिरी बार प्रेम कहाँ देखा गया था
और मैं गीता में हाथ रखकर कसम खाकर कहता हूँ,
"मैंने सेल्फ डिफेंस में किया खून."
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(3)

नब्ज़ काट लेने दो
कि सौ साल का हूँ मैं
सरकारी तफ्तीशों में मेरी आत्महत्या 'एक नैसर्गिक मौत' मानी जायेगी
जबकि टेक्नीकली कोई भी मृत्यु नैसर्गिक नहीं होती
कोई सांस लेना यूँ नहीं भूलता जैसे मजदूर भूल जाता है कान में रखी बीड़ी.
मरना एक आदत है
ढेर दोहरावों से भरी
'इतिहास अपने को दोहराता है' इस जुमले की तरह
मैं नौ माह के गर्भ काल के बाद फ़िर-फ़िर जन्मा हूँ
मेरे अतीत से जुडी हुई नाड़ी फ़िर-फ़िर अलग की गई
स्टेरेलाइज्ड सीज़र से.
तो
नब्ज़ को काट लेने दो,
ये आत्महत्या नहीं आत्मजन्म है गोया.
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(4)

छिः ! कैसी कविताएँ लिखते हो कहा तुम ?
न कोई सिर न पैर
न अर्थ, न उद्देश्य
न प्रेरणाएँ न अवसाद
न भाव कोई न चमत्कार
न कोई आर्थिक लाभ इनका न सामाजिक सरोकार
न लेफ्टिस्ट न आशावादी
न प्रेम न फलसफे !
...क्या लिख रहे हो अब ?
ओहो ! 'ज़िंदगी' ?
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(5)

ये दुनियाँ परिष्कृत हो रही है
इसलिए धीरे धीरे नष्ट हो रही है
बारूद के ढेर में नहीं ज्ञान के ढेर में बैठी है
पागल होने का नहीं इसके बुद्धिजीवि होने का खतरा है ।
पागल एक वक्त में एक ख़ून करता है ।
जिसे तुम देशद्रोह कहते हो उसे पागल भूगोल समझते हैं ।
जिसे तुम धर्म कहते हो उसे युद्ध और जिसे युद्ध कहते हो उसे धर्म समझते हैं ।
राजनीति तुम्हारे लिए एक बड़ी खूबसूरत चिड़िया है,
पागल उसकी चोंच में बिलबिलाते कीड़े देखते हैं ।
'समाज' तुम समझाते नहीं उन्हें, और 'क्राँतिया' वो समझना नहीं चाहते ।
इंसान तुम समझा नहीं पाते उन्हें
जिसे तुम प्रेम कहके समझाते हो उसे समझ ही नहीं पाते ।
तुम्हें पागलों से कोई खतरा नहीं क्यूँकि वो देवालयों में भी उतना ही नहीं जाते जितना गुरुद्वारे में ।
दोनों जगह लंगर बाहर लगते हैं और पेट भर जाता है ।
पागल अपने छोटे छोटे पत्थर भी जेबों में छुपा लेते हैं ।
तुमको दिखेंगे तो तुम कविताएँ कहकर मज़ाक बनाओगे ।