शनिवार, 5 जुलाई 2014

सबसे बड़ी अभिव्यक्ति आंसूओं को नहीं माना जाना चाहिए

खुद को ताउम्र सहन करना 
बने रहना ख़ुद के साथ हमेशा 
कभी खुद को भूला न पाए
कभी खुद की याद न आये 
अपने को खोजना दरअसल घुप्प अँधेरे में सुई खोजना नहीं 
वो है अँधेरा खोजना 

अपना होना बाकी सब की अनुपस्थिति मात्र है 
इससे अधिक कुछ नहीं
इतना सा भी नहीं 

कान बंद करके सुना जा सकता है जिसे
आँख बंद करके देखा जा सकता है उसे
महसूस किया जा सकता है जिसका स्पर्श
सारी सम्वेदनाओं को नकार के

असत्य है ये कथन कि मैं उदास हूँ
मैं खुद को खुद ही उदास करता हूँ,
मेरे पास मेरा कोई विकल्प नहीं
मृत्य भी नहीं
आत्महत्या करना भी खुद की उम्मीद करना ही है
अपने को स्वीकारना.

कुछ लिखने या कहने से अधिक बड़ी अभिव्यक्ति
रोना और चार सौ कविताएँ पढना
अन्यथा कुछ भी तो न पढ़ता
और अगर पढ़ता तो
कोई कविता अधूरी पढ़े बिना नहीं छोड़ता

और जब मैं अपने को जानने के बावज़ूद
प्रेम कर सकता हूँ अपने से
तो कोई कारण नहीं कि फिर मैं किसी और से प्रेम न करूं.
बाकी सब तो फिर भी अपेक्षाकृत कम 'मैं' हैं.

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'ज़िन्दगी' भी कितनी लम्बी होती है ना??
'ज़िन्दगी' भर चलती है...